ज्योतिष शास्त्र क्या है (What Is astrology)

आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है और इसी आवश्यकता ने जीवन के संपूर्ण ज्ञान का सूत्रपात किया है | यहाँ ज्ञान का अर्थ उस सत्य से है, जो इस ब्रह्माण्ड और जीवन के हर कण-कण में समाहित है |परंतु आधुनिकता ने हमें इस परम सत्य से दूर कर दिया है | इसलिए आज हमें आवश्यकता है, इस परम सत्य को ज्ञान का रूप देकर जीवन को सफल बनाने की | अर्थात मानव जीवन में कर्म अति आवश्यक है और कर्म की सार्थकता तभी सिद्ध हो सकती है जब उसका आधार ज्ञान और सत्य से जुड़ा हो | गीता के चौथे अध्याय में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं |

                                        किं कर्म किमकर्मेति कवयोऽप्यत्र मोहिताः।
                                        तत्ते कर्म प्रवक्ष्यामि यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात्।।

अर्थात:- कर्म क्या है और अकर्म क्या है, इसे निश्चित करने में बुद्धिमान व्यक्ति भी मोहग्रस्त ग्रस्त हो जाते हैं| अतएव मै तुम्हे बताऊंगा कर्म क्या है जिसे जानकर तुम सारे अशुभ से मुक्त हो सकोगे | भगवान कृष्ण का यह कथन हमें अपने सनातन संस्कृति और ज्ञान की ओर ध्यान केंद्रित कराता है, जहां अनेक ऋषि-मुनियों के द्वारा वर्षो के तप ,ध्यान और अनुसंधान के बाद ज्योतिष, चिकित्सा, वास्तु शास्त्र तथा अंकशास्त्र जैसे अनेक ज्ञान का सूत्रपात किया गया | 

 समय के साथ भौतिकवादी दृष्टिकोण के कारण हम अपने सनातन संस्कृति और ज्ञान से दूर होते चले गए और इसका प्रभाव हमारे जीवन पर प्रत्यक्ष रूप से पड़ा है| एक और जहां जीवन में सुख समृद्धि और शांति चाहिए वहीं दूसरी ओर दुःख, अस्थिरता और अशांति ने हमारे जीवन में अपनी जगह बना ली है|

 अगर हम नवीन विज्ञान की ओर ध्यान केंद्रित करे तो नजर आएगा कि यह अपने प्राचीन आधारभूत विज्ञान से बिल्कुल भिन्न हो गया है| जैसे आज का ग्रह और नक्षत्र विज्ञान प्राचीन ज्योतिष शास्त्र से ही निकले हैं और इसमें कोई संदेह नहीं है कि ऐतिहासिक दृष्टि से आधुनिक खगोल शास्त्र प्राचीन ज्योतिष शास्त्र के बाद ही आता है, परंतु प्राचीन से आधुनिकता तक के इस कालक्रम का संबंध विकास या प्रगति के रूप में नहीं बल्कि अवनति और ह्रास के रूप में हमारे सामने आया है| 

 प्राचीन काल से चली आ रही सनातन संस्कृति और ज्ञान मात्र ग्रहों के अध्ययन पर आधारित नहीं था, बल्कि उनका उद्देश्य अध्ययन के साथ- साथ मानव जीवन के हर पहलू पर उसके प्रभाव को जानना था, जैसे- अगर वर्तमान समय में पूर्णिमा या अमावस्या का समय आता है ,तो यह हमारे लिए मात्र एक तथ्य है ,परंतु ज्योतिष शास्त्र हमें उन पहलुओं की ओर भी ध्यान केंद्रित कराता है कि आखिर इस विशेष दिन का मनुष्य तथा अन्य जीवो के स्वभाव पर क्या प्रभाव पड़ सकता है | यह अति सूक्ष्म अध्ययन के माध्यम से हम यह भी समझने में भी मदद करता है कि विभिन्न ग्रह, उपग्रह, नक्षत्र, आकाशगंगा और ब्रह्मांड में व्याप्त उन सभी पदार्थों का हमारे जीवन से क्या संबंध है , जैसे एक व्यक्ति जिसका जन्म 6 अप्रैल 2021 को भारत के दिल्ली शहर में हुआ और एक दूसरा व्यक्ति है, जिसका जन्म 6,7 या 8 अप्रैल को भारत के असम, अमेरिका के कैलिफ़ोर्निया या किसी भी स्थान पर हुआ हो तो ज्योतिष शास्त्र हमें यह बता सकता है कि आखिर दोनों व्यक्तियों के विचार, व्यवहार तथा उनका संपूर्ण जीवन किस प्रकार एक दूसरे से भिन्न है ,और पूरा जीवन किस प्रकार व्यतीत होगा |

 अगर हम पहले व्यक्ति का उदाहरण ले जिसका जन्म 6 अप्रैल 2021 को भारत के दिल्ली शहर में हुआ तो हम ज्योतिष शास्त्र से यह ज्ञात कर सकते है की एक निश्चित स्थान के अक्षांश और देशांतर पर जन्मे किसी व्यक्ति के जन्म के समय किसी ग्रह की स्थिति क्या थी और यही ग्रह की निश्चित स्थिति उसके संपूर्ण जीवन को निर्धारित करता है, क्योंकि ग्रह तथा नक्षत्रो की दिशा और गति के परिवर्तन की दर निश्चित है | जैसे पृथ्वी सूर्य का चक्कर लगाने में 1 वर्ष का समय लेती है तो ऐसा नहीं है कि वर्षों बाद उसका समय चक्र बढ़कर 2 वर्ष हो जाएगा हां यदि कई वर्षों के बाद में कुछ परिवर्तन होते हैं ,तो ज्योतिष शास्त्र के द्वारा इसकी गणना हम कर सकते हैं |

 वस्तुतः ज्योतिष शास्त्र इस ब्रह्मांड के प्रत्येक सजीव और निर्जीव के बीच के संबंध को दर्शाता है अतः हम यह नहीं कह सकते हैं कि यह शास्त्र किसी धर्म, संप्रदाय या जाति से संबंधित है | प्राचीन काल में यह हर प्रकार के सम्प्रदायों और धर्मों के बीच व्याप्त था , जैसे चीन के लोगों के पास ज्योतिष की एक विशेष प्रकार की पद्धति विद्यमान थी | अगर हम अरब वासियों को देखें तो वह मध्यकाल तक अपने व्यापारिक मार्ग में ज्योतिष के अनुसार मौसम और ग्रहों की दिशा का अध्ययन करते थे | प्राचीन यूनानीयों में ज्योतिष का महत्वपूर्ण स्थान था, उन्होंने मनुष्य को पृथ्वी पर खड़ा एक प्रेक्षक (स्थान) माना और वहां से नक्षत्रों के बीच के कोण मापने का प्रयास किया और 90 डिग्री के कोण को इन्होने ज्योतिष में विशेष महत्व दिया है| 

 हां यह तथ्य जरूर है कि विभिन्न कालक्रम के बाद ज्योतिष जैसा अद्वितीय ज्ञान कहीं पर समाप्त हो गया तो कहीं इसकी अवनति हुई | तथापि भारतीय ज्योतिष जो की इस शास्त्र का मूल जन्म स्थान है आज भी बहुत हद तक अपनी मूल अवस्था में विद्यमान है और इसका कारण यहाँ की भारतीय संस्कृति का इसके सनातन परंपरा से संबंध होने से है |

ACHARYA PANKAJ
Vastu Consultant and Professional Teacher