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वास्तु शास्त्र के सम्पूर्ण एवं विस्तारपूर्ण अध्ययन से पूर्व वास्तु पुरुष का ज्ञान होना अतिआवश्यक है | जिस प्रकार एक शरीर के बिना आत्मा की अभिव्यक्ति नहीं की जा सकती, उसी प्रकार हमारे घर में पंचतत्वों की अभिव्यक्ति के लिए वास्तुपुरुष की उपस्थिति आवश्यक है, अर्थात घर के भीतर पंचतत्व आत्मा के रूप में होते है और वास्तुपुरुष एक शरीर की भाँति | यहाँ वास्तुपुरुष का हर एक अंग हमारे घर के भीतर हर एक निश्चित स्थान को इंगित करता है| अतः हम वास्तु पुरुष के माध्यम से अपने आवास में पंचतत्वो के ऊर्जा के प्रवाह और उसके संतुलन को समझ सकते है |
प्राचीनकाल से ही धार्मिक ग्रंथो में सत्य को समझाने के लिए अनेक कथा और कहानियो का संदर्भ लिया जाता रहा है | सभी सत्य का अपना एक वैज्ञानिक स्वरुप होता है परन्तु सत्य की सर्वसम्मति तभी सिद्ध होती है, जब उसका आधार, आस्था तथा परम पिता परमेश्वर से जोड़ा जाए | वास्तु पुरुष की उत्पत्ति का आधार भी कुछ इसी प्रकार रहा |
मतस्य पुराण के अनुसार एक समय भगवान शिव और अंधकासुर के बीच एक भिषण युद्ध छिड़ा, उसी दौरान जब दोनों का पसीना एक ही स्थान पर गिरा तो उस स्थान पर एक घटना घटी और वास्तु पुरुष का निर्माण हुआ | चूकि इसका निर्माण दोनों के सम्मिलित पसीने से हुआ था , इसीलिए वास्तु पुरुष में देव और दानव दोनों की प्रवर्तियाँ नजर आने लगी | इसका शरीर दिन प्रतिदिन विशाल होता गया और धीरे-धीरे वह अपने सामने आने वाले सभी वस्तु तथा जीव का भक्षण करने लगा | यह देखकर देवता और दानव दोनों चिंतित हुए और अंतिम विकल्प ब्रह्मा जी की शरण में गए, लेकिन जब वास्तु पुरुष इनका पीछा करते हुए ब्रह्मा जी के पास पहुँचा तो वह दंग रह गया |
ब्रह्मा जी के परम तेजस्वी स्वरुप ने उसे शांत कर दिया और वह उनके सामने नतमस्तक हो गया | इसी से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने आशीर्वाद के रूम में वास्तु पुरुष को अपने मानस पुत्र की संज्ञा दी | यही कारण है कि जिस प्रकार ब्रह्मा जी को संसार का रचयिता कहते है | उसी तरह वास्तु पुरुष को भी आपके आवास का रचनाकार माना गया है | .
जिस क्षण वास्तु पुरुष ब्रह्मा जी के समक्ष नतमस्तक होकर लेटा था ,उसी क्षण ब्रह्माजी के आदेश से सभी देवी-देवता उसके शरीर के विभिन्न अंगो पर विराजमान हो गए | अपने आप को इस स्थिति में पाकर उसने ब्रह्मा जी से अपने आहार का प्रश्न उठाया तो ब्रह्मा जी ने उत्तर देते हुए कहा की जो लोग अपने भवन का निर्माण करते समय प्रकृति के नियम और पंचतत्वों का संतुलन नहीं करेंगे, वही लोग तुम्हारा आहार होंगे |
इस कहानी का तात्पर्य यही था , कि हमारे ब्रह्माण्ड में प्रकृति का एक निश्चित नियम विद्यमान है और हमें भवन के निर्माण के समय इसका विशेष ध्यान रखना चाहिए | भवन एक वास्तु पुरुष का स्वरुप होता है | यहाँ देव यानि सकारात्मक ऊर्जा और दानव यानि नकारात्मक ऊर्जा दोनों विधमान है| इसीलिए जब हम नियम का पालन करते है तो सकारात्मक ऊर्जा तथा जब पालन नहीं करते तो नकारात्मक ऊर्जा आती है |
तो चलिए अब हम अपने भवन में वास्तुपुरुष के अंगो को समझते है और प्रत्येक दिशा की ऊर्जा को जानने की कोशिश करते है:-वास्तु पुरुष अधोमुखी लेटा होता है ,अर्थात भूमि के तरफ उसका चेहरा होता है | उसका मस्तिष्क (शिखर) ब्रह्मा जी के चरणों की ओर था इसीलिए उस स्थान को ईशान कोण यानि ईश्वर का स्थान कहा गया | दोनों पांवो के तलवे एक दूसरे के पास नैऋत्य कोण में होते है जो ईशान कोण के विपरीत की दिशा है | दांया हाथ और पैर का जोड़ यानि घुटना आग्नेय कोण की तरफ तथा बांया हाथ एवं बांया पैर का जोड़ वायव्य कोण की ओर होता है ,जो की आग्नेय कोण के विपरीत की दिशा है | बीच में नाभि का स्थान जिसे ब्रह्म स्थान कहा जाता है यानि प्रत्येक ऊर्जा की उत्पत्ति का स्थान | इसी प्रकार आप इस चित्र के माध्यम से इसके चारो ओर व्याप्त कुल 45 देवी-देवताओ के स्वरुप को समझने की कोशिश करे |
ACHARYA PANKAJ
Vastu Consultant and Professional Teacher