पंच तत्व
वास्तु शास्त्र में पंच तत्वों का विशेष महत्व है पंच तत्त्व यानि जल, वायु, पृथ्वी, अग्नि और आकाश |
अगर सूक्ष्म दृष्टि से देखा जाए तो पंचतत्व वास्तु शास्त्र का आधार स्तंभ है | इस सृष्टि में प्रत्येक रचना का प्रारम्भ, विकास और अंत इन्ही पंचतत्वों के बीच होता रहता है | उदाहरण के लिए हम एक वृक्ष को लेते है | प्रारम्भ में वह एकमात्र बीज रूप होता है परन्तु जब इस बीज रूप में पंचतत्वों का संतुलन व्याप्त होता है , तब वह एक विशाल वृक्ष का रूप धारण करता है | इसी प्रकार इंसान का शरीर भी है | यह भी पंचतत्वों के बीच निरंतर गतिमान है |
साधारण शब्दों में अगर हम समझे तो पंचतत्व एक ऊर्जा है जो सार्वकालिक से हमारे अस्तित्व का आधार स्तम्भ बना हुआ है | इसलिए इसका संतुलन में रहना विकास और वृद्धि का सूचक है | यदि यह संतुलित है तो निर्माण करेगा और यदि असंतुलित हो जाये तो विध्वंस का कारक बनेगा | इन्ही पंचतत्वों को सांकेतिक रूप से भगवान की संज्ञा भी दी जाती है | भगवान - भ + ग + व + अ + न | यह भूमि + गगन + वायु + अग्नि + नीर का सांकेतिक सूचक है |
पिछले अध्याय में हमने पढ़ा था कि हमारे घर का वास्तु पुरुष से किस प्रकार सम्बन्ध है, और वास्तु पुरुष का प्रत्येक अंग कैसे हमारे घर की एक निश्चित दिशा को इंगित करता है | अब हम इस अध्याय में समझेंगे की वास्तु या हमारे घर में पंचतत्वों की ऊर्जा कैसे कार्य करती है और प्रत्येक तत्व वास्तु पुरुष के किस अंग से सम्बंधित है|
तो आइए पहले हम पंचतत्वों में प्रत्येक तत्व की प्रकृति को समझते है | पंचतत्वों की प्रकृति इस प्रकार है की वह एक निश्चित संरचना में कार्यरत होकर एक दूसरे के निर्माण में सहायक होते है और अनिश्चित संरचना में कार्यरत होकर विनाश में भी सहायक होता है | :- इसे समझने के लिए दोबारा हम इस वृक्ष का ही उदाहरण लेते है | जैसे आकाश से वर्षा होती है, इसी वर्षा के जल से भूमि में दबा हुआ बीज अंकुरन के लिए प्रेरित होता है | वातावरण से CO2 के रूप में वायु प्राप्त करता है और बड़ा होकर O2 के रूप में हमें प्राण वायु भी प्रदान करता है | अर्थात प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों ही रूप में वायु का निर्माण वृक्ष से ही होता है | जब यही वृक्ष वृद्ध हो जाता है तो इससे प्राप्त लकड़ी के जलने पर हमें अग्नि की प्राप्ति होती है | जब अग्नि बुझ जाती है तो उसके अवशेष मृदा का निर्माण करते है | यानि पृथ्वी तत्व का निर्माण होता है | पृथ्वी के भीतर से हम धातु प्राप्त करते है | धातु तथा मेटल को एक ही तत्व माना जाता है|
इसी प्रकार यह चक्र निरंतर चलता रहता है | प्रकति का यही नियम है और यह निरंतर गतिमान है| इस नियम में असंतुलन विनाश को जन्म देता है |
अब हम जानते है की जब यह चक्र असंतुलित होगा हो इसके क्या परिणाम हो सकते है |
1. जब जल और अग्नि संपर्क में आते है तो अग्नि समाप्त हो जाती है |
2. इसी प्रकार अग्नि को जब धातु के संपर्क में लाया जाता है तो धातु (आकाश तत्व) खत्म हो जाता है |
3. ऐसे ही धातु से बनी कुल्हाड़ी से वृक्ष (वायु तत्व) को ख़त्म किया जा सकता है अर्थात आकाश तत्व का वायु तत्व के साथ सीधा संपर्क , वायु तत्व को नष्ट कर देता है |
4. वायु तत्व पृथ्वी तत्व को नष्ट करने का कार्य करता है, क्योंकि वायु के घर्षण से पृथ्वी तत्व का कटाव होता है |
5. पृथ्वी तत्व जल तत्व को नष्ट करता है क्योकि जब हम जल को पृथ्वी पर गिराते है तो जल तत्व पृथ्वी द्वारा सोख लिया जाता है और वह नष्ट हो जाता है |
अतः पंचतत्व के चक्र के अनुसार देखे तो नज़र आएगा कि प्रत्येक तत्व अपने आगे आने वाले एक तत्व को छोड़कर दूसरे तत्व को नष्ट कर देता है | वस्तुतः इन तत्वों को Clockwise चलाना निर्माण चक्र कहलाता है, जबकि Anti Clockwise चलाना Cycle of Suppress कहलाता है |
यही कारण है की हमें घर के वास्तु में पंचतत्वों के cycle का विशेष ध्यान देना चाहिए | जैसा कि हमने वास्तुपुरुष के निर्माण में देखा की उसके शरीर पर देव और दानव दोनों विराजमान है | इसलिए यदि पंचतत्व चक्र सही है तो वहाँ मौजूद देव की ऊर्जा बढ़ेगी और घर का वातावरण सदैव सकारात्मक होगा | इसके विपरीत यदि चक्र उल्टा है तो वहाँ मौजूद दानव जाग्रत होगा यानि नकारात्मक ऊर्जा अपना कार्य करने लगेगी और घर में दुःख, दरिद्रता, असंतोष और बीमारी जैसा माहौल बना रहेगा | अतः पंचतत्वों का संतुलन हमारे जीवन में बेहद आवश्यक है |